छत्तीसगढ़ में सुशासन पर सवाल: क्या मोदी की गारंटी सिर्फ चुनावी जुमला थी?

कोयला घोटाला मामले में एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ शुरू हुई विभागीय जांच (डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी) को गृह विभाग द्वारा बिना किसी जांच के ही नस्तीबद्ध (फाइल बंद) कर दिए जाने की खबरें विष्णु देव साय की सुशासन सरकार के इरादों पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। जिस अधिकारी को चार बार नोटिस जारी होने के बावजूद वह जांच में उपस्थित नहीं हुआ, उसकी फाइल अचानक बंद कर देना, क्या यह दर्शाता है कि सरकार ने अपने भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे से मुंह मोड़ लिया है?

मोदी की गारंटी का क्या हुआ?

छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गारंटी दी थी कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचारी कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा और उस पर सख्त कार्रवाई होगी। इसी गारंटी पर भरोसा करके छत्तीसगढ़ की जनता ने भाजपा को भारी बहुमत दिया। लेकिन अब जब सत्ता में एक 'सुशासन' वाली सरकार है, तब एक हाई प्रोफाइल मामले में कार्रवाई की बजाय, जांच को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। क्या यह मान लिया जाए कि 'मोदी की गारंटी' सिर्फ चुनावी जुमला थी और अब उसकी कोई अहमियत नहीं बची है?

फाइल बंद होने का मतलब क्या?

सूत्रों से मिली जानकारी अगर सही है, तो यह स्पष्ट है कि सरकार ने एक बड़ा संदेश दिया है: कुछ प्रभावशाली अधिकारी या लोग अभी भी कानून से ऊपर हैं। अगर एक अधिकारी चार-चार नोटिस को नजरअंदाज कर देता है और सरकार उसके खिलाफ आगे की कार्रवाई करने की बजाय जांच को ही बंद कर देती है, तो यह सुशासन नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारियों को मौन समर्थन देने जैसा है।

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यह कार्रवाई न सिर्फ कानून के राज पर सवाल उठाती है, बल्कि उन ईमानदार अधिकारियों के मनोबल को भी तोड़ती है जो वाकई में बदलाव लाना चाहते हैं। अगर भ्रष्टाचारियों को पता है कि उनका 'बाल भी बांका' नहीं होगा, तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना सिर्फ एक दूर का सपना बन जाएगा।

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सरकार को देनी होगी सफाई

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार को इस मामले में न केवल तत्काल पारदर्शी सफाई देनी चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस जांच को तुरंत फिर से खोला जाए। अगर सरकार वास्तव में 'मोदी की गारंटी' और सुशासन के प्रति ईमानदार है, तो इस तरह के मामलों में बिना देरी और बिना पक्षपात के कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा, यह जनता मान लेगी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ जुबानी जमा खर्च है और छत्तीसगढ़ में 'सुशासन' की गाड़ी पूरी तरह से फेल हो चुकी है।

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