छत्तीसगढ़ में बड़ा पर्यावरण घोटाला: नाला बताकर नदी में बहाई राख, अफसरों की मिलीभगत से नियम ताक पर

कोरबा, छत्तीसगढ़। कोरबा में पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। एक बंद पत्थर खदान में नियमों के खिलाफ फ्लाई ऐश (राख) भरने के लिए एक नदी को कागजों में 'नाला' बता दिया गया। इस फर्जीवाड़े में मेसर्स एसीबी इंडिया लिमिटेड और कुछ दूसरी कंपनियों के साथ-साथ सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं। उन्होंने मिलीभगत करके गलत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करवाई, जिसके आधार पर कंपनियों को राख डंप करने की अनुमति दे दी गई। यह पूरा मामला एक शिकायत के बाद सामने आया है और अब कलेक्टर, खनन विभाग और पर्यावरण संरक्षण मंडल तक पहुंच गया है।

क्या है पूरा मामला?

यह खेल नवंबर 2020 में तब शुरू हुआ जब मेसर्स डीबीएल को कोनकोना खदान में खनन की अनुमति मिली थी। उस समय यह तय हुआ था कि खनन के बाद खदान के गड्ढे को जलाशय में बदला जाएगा। दस्तावेजों में यह भी साफ लिखा था कि तान नदी खदान से 165 मीटर की दूरी पर बहती है, जो महानदी की एक सहायक नदी है।

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लेकिन 24 अप्रैल 2025 को मेसर्स एसीबी इंडिया लिमिटेड ने इसी नदी को 'नाला' बताया। ऐसा करके उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय के 28 अगस्त 2019 के उस आदेश को दरकिनार करने की कोशिश की, जिसमें कहा गया है कि फ्लाई ऐश डंपिंग स्थल किसी भी नदी या जल निकाय से कम से कम 500 मीटर दूर होना चाहिए।

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अधिकारियों ने की मिलीभगत

सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब 6 मई 2025 को छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में जानबूझकर यह तथ्य छिपा लिया कि तान नदी खदान के 100 से 150 मीटर के दायरे में ही है। इसी झूठी रिपोर्ट के आधार पर 8 मई 2025 को मेसर्स एसीबी इंडिया लिमिटेड, मेसर्स बाल्को और मेसर्स मारुति क्लीन कोल एंड पावर लिमिटेड जैसी कंपनियों को नियमों के खिलाफ जाकर राख डंप करने की अनुमति दे दी गई।

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शिकायत के बाद हुआ खुलासा

इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश 23 जून 2025 को हुआ, जब केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) में एक शिकायत दर्ज की गई। इसके बाद 2 जुलाई 2025 को कोरबा कलेक्टर और खनन विभाग को भी शिकायत भेजी गई, जिसमें साफ बताया गया कि यह डंपिंग सरकारी नियमों और खदान के स्वीकृत प्लान का उल्लंघन है। 8 जुलाई 2025 को यह शिकायत खान एवं खनिज विभाग के सचिव और पर्यावरण संरक्षण मंडल के सदस्य सचिव तक भी पहुंच गई।

शिकायतकर्ता गोविंद शर्मा ने मांग की है कि राख डंपिंग को तुरंत रोका जाए, जलाशय को उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाए और दोषी कंपनियों के साथ-साथ मिलीभगत करने वाले अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई हो। अगर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और हाईकोर्ट में जाने की चेतावनी दी है। अब देखना यह है कि इस गंभीर मामले में क्या कार्रवाई होती है और दोषियों पर क्या गाज गिरती है।

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