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अनुभव से बड़ी डिग्री? शिक्षकों पर टीईटी की तलवार, गुरूजी बोले- यह अपमान
रायपुर। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी), जिसे शिक्षक एबिलिटी टेस्ट भी कहा जाता है, सरकारी और निजी स्कूलों में नियुक्ति के लिए अनिवार्य योग्यता परीक्षा है। इसे केंद्र (CTET) और राज्य सरकारें आयोजित करती हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यह परीक्षा पहले से कार्यरत शिक्षकों पर भी लागू होगी। उन्हें दो साल के भीतर परीक्षा पास करनी होगी, अन्यथा नौकरी से हटाए जाने या समयपूर्व सेवानिवृत्ति का खतरा रहेगा। इस फैसले को लेकर पूरे देश में शिक्षकों ने विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि दशकों तक सेवा दे चुके और रिटायरमेंट की उम्र के करीब पहुंच चुके है, शिक्षकों से फिर से योग्यता सिद्ध करने को कहना अपमानजनक है।
शिक्षकों का तर्क है कि भर्ती के समय ही बीएड, डीएड जैसी डिग्रियां अनिवार्य रहती हैं। ऐसे में टीईटी जैसी परीक्षा को बार-बार थोपना उचित नहीं है। उनका मानना है कि नई नियुक्तियों के लिए परीक्षा को अनिवार्य करना ठीक है, लेकिन पुराने शिक्षकों पर इसे लागू करना अव्यावहारिक है। वहीं शिक्षा क्षेत्र में पहले भी स्लैट जैसी परीक्षाएं लागू की गई थीं, लेकिन पर्याप्त रिक्तियां न होने से युवाओं को निराशा हाथ लगी। लगातार बढ़ती प्रतियोगिता और रोजगार के अवसरों की कमी के बीच इस तरह की परीक्षाएं शिक्षकों में असंतोष पैदा कर रही हैं।
शिक्षकों का कहना है कि निजी शिक्षा संस्थान पहले से ही शिक्षा को व्यवसाय बना चुके हैं। ऐसे में नई परीक्षाओं का बोझ शिक्षकों और छात्रों दोनों को भ्रमित करने का काम करेगा। उनका सुझाव है कि सरकार को व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाकर इस नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और कोर्ट में रिवीजन पिटीशन दाखिल करना चाहिए। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नीतियां इस तरह बनाई जानी चाहिएं, जिससे छात्रों को व्यवहारिक और रोजगारपरक शिक्षा मिल सके, न कि केवल डिग्रियों और औपचारिक परीक्षाओं का बोझ।
